पुरुषोत्तम मास माहात्म्य
अनन्त फलदायी “ *पुरुषोत्तम मास माहात्म्य* "
👉तिथि :- शुक्रवार 18 सितंबर से
शुक्रवार 16 अक्तूबर
👉विशेष :- इस मास में भगवान श्री राधा कृष्ण के समस्त उत्सवो को आनन्द पूर्वक मनाया जा सकता है
👉महात्म:-भगवान के नाम, कथा, लीला, उत्सवो का श्रवन, कीर्तन, तीर्थ यात्रा, सनान दान, वृत नियम अनन्त अनन्त फलदायी होते है
👉नियम:-पूरे मास भगवान के निमित्त कोई ना कोई नियम सभी वैष्णवो को अवश्य लेना चाहिए
👉कथा:- इस मास मे सूर्य की कोई संक्रांति नही होती ।
पुराणों में अधिकमास यानी मलमास के पुरुषोत्तम मास बनने की बड़ी ही रोचक कथा है। उस कथा के अनुसार बारह महीनो के अलग-अलग स्वामी हैं पर स्वामीविहीन होने के कारण अधिकमास को 'मलमास' कहने से उसकी बड़ी निंदा होने लगी। इस बात से दु:खी होकर मलमास श्रीहरि विष्णु के पास गया और उनसे दुखड़ा रोया।
भक्तवत्सल श्रीहरि उसे लेकर गोलोक पहुँचे। वहाँ श्रीकृष्ण विराजमान थे। करुणासिंधु भगवान श्रीकृष्ण ने मलमास की व्यथा जानकर उसे वरदान दिया- अब से मैं तुम्हारा स्वामी हूँ। इससे मेरे सभी दिव्य गुण तुम में समाविष्ट हो जाएंगे। मैं पुरुषोत्तम के नाम से विख्यात हूँ और मैं तुम्हें अपना यही नाम दे रहा हूँ। आज से तुम मलमास के बजाय पुरुषोत्तम मास के नाम से जाने जाओगे।
शास्त्रों के अनुसार हर तीसरे साल सर्वोत्तम यानी पुरुषोत्तम मास की उत्पत्ति होती है। इस मास के दौरान जप, तप, दान से अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है। इस मास में भागवत कथा, श्रीमद्भगवतगीता, श्रीराम कथा और विष्णु भगवान की उपासना की जाती है। इस माह उपासना करने का अपना अलग ही महत्व है।
*इस माह मे तुलसी अर्चना करने का विशेष महत्व बताया गया है।*
पुरुषोत्तम मास में
कथा पढने, सुनने से भी बहुत लाभ प्राप्त होता है।
इस मास में जमीन पर शयन,
एक ही समय भोजन करने से अनंत फल प्राप्त होते हैं।
सूर्य की बारह संक्रांति के आधार पर ही वर्ष में 12 माह होते हैं। प्रत्येक तीन वर्ष के बाद पुरुषोत्तम माह आता है।
पंचांग के अनुसार सारे तिथि-वार, योग-करण, नक्षत्र के अलावा सभी मास के कोई न कोई देवता स्वामी है, किंतु पुरुषोत्तम मास का कोई स्वामी न होने के कारण सभी मंगल कार्य, शुभ और पितृ कार्य वर्जित माने जाते हैं।
दान, धर्म, पूजन का महत्व पुराण शास्त्रों में बताया गया है कि यह माह व्रत-उपवास,
दान-पूजा,
यज्ञ-हवन और
ध्यान करने से मनुष्य के सारे पाप कर्मों का क्षय होकर उन्हें कई गुना पुण्य फल प्राप्त होता है। इस माह आपके द्वारा दान दिया गया एक रुपया भी आपको सौ गुना फल देता है। इसलिए अधिक मास के महत्व को ध्यान में रखकर इस माह दान-पुण्य देने का बहुत महत्व है। इस माह भागवत कथा,
श्रीराम कथा श्रवण पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
धार्मिक तीर्थ स्थलों पर स्नान करने से आपको मोक्ष की प्राप्ति और अनंत पुण्यों की प्राप्ति मिलती है।
पुरुषोत्तम मास का अर्थ जिस माह में सूर्य संक्रांति नहीं होती वह अधिक मास कहलाता होता है। इनमें खास तौर पर सर्व मांगलिक कार्य वर्जित माने गए है, लेकिन यह माह धर्म-कर्म के कार्य करने में बहुत फलदायी है। इस मास में किए गए धार्मिक आयोजन पुण्य फलदायी होने के साथ ही ये आपको दूसरे माहों की अपेक्षा करोड़ गुना अधिक फल देने वाले माने गए हैं।
पुरुषोत्तम मास में
दीपदान,
वस्त्र एवं श्रीमद् भागवत कथा ,ग्रंथ दान का विशेष महत्व है।
इस मास में दीपदान करने से धन-वैभव में वृद्घि होने के साथ आपको पुण्य लाभ भी प्राप्त होता है
सभार
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#पुरुषोत्तममास#
#आचार्य विनोद जी#
Nice information Pandit ji
ReplyDeleteकमेंट करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद जी
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